Tuesday, February 13, 2007

वेलेन्टाईन डे....

आह ! फ़ागुनी मौसम में प्रेम ही प्रेम का उन्माद हवाओं में है, बहता
और पूरे वर्ष में एक ही दिन प्रेम का, हमे यह कहता
लो आ गया वेलेन्टाईन डे, हर युवा दिल झूम-झूम यह गाता
आओ हम सब मिलकर यह दिन यादगार बनायें
और पिछले साल से ज्यादा बेशर्मी और अय्याशी फ़ेलायें
कोन सबसे हसीन व बिंदास साथी के साथ करेगा डेट
यह करेगा आपका वेलेन्टाईन बजट सेट
किसके दिल की कितनी सच्ची है धड़कन

महगें गिफ़्ट और ग्रीटिंग कार्ड से होगा यह आकलन
आज रात सभी क्लब और रेस्टोरेन्ट प्रेम की रोशनी से झिलमिलायेगें
और युवा प्रेमी अपनी नैतिकता का कुछ और स्तर गिरायेगें
हर साल नये कार्ड और तोहफ़ों की तरह साथी भी बदलते जायेगें
तभी तो हम आधुनिक कहलायेगें
उस देश का निश्चित ही है सूर्य अस्त
जहाँ के युवा होगें भोगवाद में मस्त और बाजारवाद से ग्रस्त
अभी भी वक्त है हम संभल जायें
और अपने नैनिहालों को बतायें
इस देश में होती है प्रेम की पूजा
प्रेम से बड़ा काम नहीं है दूजा
मगर हमारे प्रेम की है अपनी परिभाषा
यहाँ प्रेम का अर्थ है कर्तव्य, समर्पण, त्याग, विश्वास और आस्था
प्रेम वह है जो बनाता है रिश्तों के आधार
प्रेम की नींव पर खड़ा होता संपूर्ण परिवार
प्रेम नहीं है तोहफ़ों के लेन-देन की आशा
इसकी तो है मूक समर्पण की अपनी ही भाषा
प्रेम है भाव देने, जोड़ने और सबको अपना बनाने का
ना की सिर्फ़ अपनी स्वार्थ सिद्धी और मोज-मस्ती का
आओ प्रेम को प्रेम की तरह ही निभायें
वेलेन्टाईन डे किसी एक के साथ, एक ही दिन नहीं
वरन संपूर्ण परिवार के साथ पूरे वर्ष ही मनायें

7 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत खुब और बड़ा करारा व्यंग्य. स्वागत है, बधाई:

कोन सबसे हसीन व बिंदास साथी के साथ करेगा डेट
यह करेगा आपका वेलेन्टाईन बजट सेट
किसके दिल की कितनी सच्ची है धड़कन
महगें गिफ़्ट और ग्रीटिंग कार्ड से होगा यह आकलन
आज रात सभी क्लब और रेस्टोरेन्ट प्रेम की रोशनी से झिलमिलायेगें
और युवा प्रेमी अपनी नैतिकता का कुछ और स्तर गिरायेगें
हर साल नये कार्ड और तोहफ़ों की तरह साथी भी बदलते जायेगें
तभी तो हम आधुनिक कहलायेगें

अनुनाद सिंह said...

शुभ्रा जी, आपकी इस कविता ने पवित्र प्रेम का पुन: दर्शन करा दिया। आशा है प्रेम का पाखण्ड करने वालों को इससे आलोक मिलेगा।

ePandit said...

वाह बहुत खूब यथार्थवादी कविता।

स्वागत है आपका चिट्ठाजगत में, आज ही आपके चिट्ठे का 'चिट्ठाचर्चा' से पता लगा।

Anonymous said...

जिस देश में ‘मदनोत्सव’ और ‘वसंतोत्सव’ जैसे न जाने कितने प्रेम और प्रेम के प्रकटीकरण तथा उत्सवीकरण के त्योहार रहे हैं वहां ‘वेलेंटाइन डे’ की यह नई कलम रोपने का काम बाज़ार और उच्च तथा उच्च-मध्य वर्ग के उसके कैश-रिच उपभोक्ता समाज का उपक्रम है जो बाज़ार के हाथों का खिलौना है.प्रेम जैसे पवित्र भाव के वाणिज्यीकरण में किसका हित छिपा है यह कौन नहीं जानता. ‘वेलेंटाइन डे’ प्रेम का नहीं बल्कि प्रेम के व्यवसायीकरण का उपकरण बन गया है जिसमें बाज़ार का हित सर्वोपरि है.अतः यह प्रेम का नहीं प्रेम के बाज़ारीकरण का त्योहार है.
पर इससे निपटने के तरीके वही नहीं हो सकते जो कुछ उग्र हिंदू संगठन अपना रहे हैं. इसे रोकने का एक तरीका अपने प्रेम के प्रतीकों का सामाजिक पुनराविष्कार अथवा पुनर्वास भी हो सकता है.अनूप जी का मंतव्य पूरी तरह सही है कि कृष्ण से बड़ा भी कोई प्रेम का प्रतीक भला हुआ है या हो सकता है? अतः वेलेंटाइन डे का यह त्योहार इस तथ्य को जांचने और आत्मविश्लेषण करने का सही अवसर भी हो सकता है कि देश में प्रेम के प्रकटीकरण और उत्सवीकरण के अवसर कम से कमतर क्यों होते गये . क्या हमने एक प्रेमविरोधी और ढोंगी समाज का निर्माण होने दिया है? प्रेमविवाहित जोड़ों के प्रति एक औसत सामाजिक का दृष्टिकोण हम सबसे छुपा नहीं है .
वेलेंटाइन डे के आक्रामक और हिंसक विरोध के बजाय एक बंद समाज की जगह पर एक प्रेम-सहिष्णु और प्रेम का अनुमोदन करने वाले समाज के निर्माण का प्रयास हमारी वरीयता होनी चाहिये . वरना एक ओर वेलेंटाइन डे पर बाज़ारू प्रेम का तुमुलनाद और दूसरी ओर प्रेमी युगलों की निर्मम हत्या के प्रसंग एक साथ देखने को मिलते रहेंगे .

Divine India said...

बैसे वेलेन्टाईन डे को ज्यादा कोसना ठीक नहीं है हमारे देश में तो त्योहारों का बाढ़ होता होता…पैसा पेकों तमाशा देखो यही उत्साह होता है… बहुतों से सुना प्रेम unconditional होता है मैं अबतक यह समझ नहीं सका…प्रेम को unconditional बताना भी तो एक condition है…इस दिन कम से कम हम भीतर के दर्द को दूसरे के सामने रख तो पाते है…कह तो पाते है…जो सालों तक छुपा था उसे इस बहाने निकाल तो पाते है…प्रेम की पवित्रता इससे बढ़ी ही है…जब हम अपने एहसास को दबाये रास्तों पर चलते है तो सही रास्ता कभी नहीं सूझता!!धन्यवाद्।

उन्मुक्त said...

हिन्दी चिट्ठे जगत में स्वागत है।

hemanshow said...

बहुत खूब। हमारा यही प्रयत्न रहे की हमारे प्रेम की कीमत ग्रीटंग कार्ड और गिफ़्ट बनाने वाली कम्पनीयाँ के बजाय स्वयं हम तय करें। फिर चाहे वो दिवाली हो या फिर वसन्तोत्सव या फिर वलेन्टाइन डे।