Tuesday, February 13, 2007

प्यार का एक दिन.....लघु कथा

सुबह-सुबह घर में माँ उठी तो देखा, घर का वातावरण कुछ बदला-बदला सा दिखा । आज पोता-पोती बिना नाज-नखरे के तैयार हो रहे थे । और बेटा-बहू भी और दिनों की अपेक्षाकृत एक दूसरे से नरमाई और प्यार भरा व्यवहार कर रहे थे । आज बूढ़ी माँ को कोई नाश्ते व लंच के लिये तंग नहीं कर रहा था । माँ का परेशान दिल कुछ समझ नहीं पा रहा था । बेटे का अच्छा मूड देखकर आज फ़िर उसने हिम्मत कर अपनी रजाई बनवाने की बात दोहराई । "शाम को बात करेगें" कहकर बेटा-बहू काम पर चले गये । स्कूल जाते समय पोते ने दादी को बताया कि शाम को मम्मी-पापा होटल में पार्टी पर जायेगें और हम भी अपने दोस्तों के साथ शाम बितायेंगे । बूढ़ी दादी ने पूछा "आज क्या है" पोते ने सगर्व बताया "आज वेलेन्टाईन डे है" । "आज के दिन दिलों में प्यार होता है, महगें-महगें गिफ़्ट दिये जाते हैं और पार्टियों में प्यार का इजहार होता है" । "प्यार का दिन है इसलिये जिसे हम प्यार करते हैं उसे तोहफ़ा देने की परंपरा है" । पापा ने मम्मी के लिये डायमंड रिंग बनवायी है । वेलेन्टाईन डे का अर्थ जानकर बूढ़ी दादी की आँखो में थोड़ी चमक आ गई । शाम को बेटा-बहू जब तैयार होकर पार्टी में जाने लगे तो माँ ने कहा "बेटा आज तो मेरी रजाई..."...अभी माँ की बात पूरी भी न हुई थी और बेटे की भृकुटियाँ तन गई और बहू की आँखो से अँगारे बरसने लगे । दोनो नफ़रत से माँ को दुतकारते हुए अपना वेलेन्टाईन डे मनाने घर से निकल पड़े । दुख व अपमान से माँ की पलकें भीग गयीं और ह्रदय की गहराई से एक दर्द भरी मुसकान होठों पर आकर ठहर गई । और अचंभित हो माँ सोचने लगी यह कैसा प्यार का दिन है । इतने में पोता इठ्लाते हुए आया और दादी की तन्द्रा भंग करते हुए बोला "आपने क्या कभी वेलेन्टाईन डे मनाया है" । निर्विकार भाव से दादी बोली हमारी तो पूरी ज़िदगी अपनो को हरपल प्यार और खुशी देने में बीत गई पर साल में प्यार का एक दिन जो एक के लिये नफ़रत और दूसरे के लिये सौगात लाता है ऎसा दिन तो हमने कभी नहीं मनाया । पोता दादी की गूढ़ बात का अर्थ न समझ सका और दादी को अकेला छोड़ वेलेन्टाईन डे मनाने निकल पड़ा ।

4 comments:

Anonymous said...

शुभ्रा, स्वागत है आपका हिन्दी चिट्ठों की दुनिया में। छोटी सी अच्छी लधुकथा है

Anonymous said...

जो लोग 'वेलेंटाइन डॆ' पर प्रेम की दुन्दुभी बजा रहे हैं उनमें से अधिकतर इन ढाई अक्षरों की सतह पर ही तैर रहे हैं. प्रेम का मोती पाने और प्रेम का वास्तविक अर्थ समझने के लिये तो गहरे पानी में पैठना पड़ेगा . पर आज इतना समय भला किसके पास है सो दिल बहलाने के लिये 'वेलेंटाइन डे' का सामयिक उपक्रम ही सही . आपकी कहानी ने मन को छुआ.

Mohinder56 said...

बहुत सुन्दर रचना है बाकी अभी बहुत कुछ पढने एंव समझने को बाकी है
मेरे ब्लाग http://dilkadarpan.blogspot.com पर पधार कर अपनी टिप्पणी से मेरी रचनाओं का मुल्याकंन करने की कृपा करें
विशेष रूप से मेरी एक कविता "केवल संज्ञान है" जो http://merekavimitra.blogspot.com पर प्रेषित है आप की टिप्पणी की प्रतीक्षा में है

मोहिन्दर

Anonymous said...

बहुत खुब अच्छा है