Thursday, March 22, 2007

पिता पुत्र संवाद...

पिता पुत्र में हुआ संवाद
नहीं होगा आज कोई वाद विवाद
करेंगें हम दो पीढ़ियों के संघर्ष का निदान
पुत्र ने दिया अपनी कथित समझदारी का प्रमाण
जूता आये एक ही नाप का तो
पिता से पुत्र का हो दोस्ताना व्यवहार
यही है नये दौर की पहचान
पिता बोले होठों पे लिये व्यंग भरी मुस्कान
अभी कच्चा है तुम्हारा यह ज्ञान
क्योंकि पिता-पुत्र का रिश्ता नहीं है तुम्हारा गणित-विज्ञान

पिता पिता होता है जनम देकर तुमपर संपूर्ण जीवन होम करता है
जीवन यज्ञ में अपनी सुख-सुविधा कर्म-धर्म व
अनुभवों की संपूर्ण आहुति देकर
सत-चरित्र व गुणों को भरकर संवारता है एक मासूम बचपन
पुत्र बोला इसमें नया क्या है
यही तो हैं पिता के कर्तव्य और काम
पिता को दोस्त बनाकर हम दे रहें है पुराने रिश्ते को नई शान
पिता बोले हमें अपने पिता होने के कर्तव्य का है पूर्ण भान
मगर दोस्त बनकर बराबरी का हक पिता नहीं जताता है, श्रीमान
तुम्हारे साथ केवल सुख के पलों का ही नहीं
हर अनकहे गम व दुख का भी होता है उसे पूर्ण ज्ञान
तभी तो ठोकर खाकर भी तुम्हें दुलारता है
और गाली खाकर भी समाज में बनाये रखता है तुम्हारा मान
पिता से गर कहना हो कुछ तो बेझिझक कह ओ नादान
लेकिन वाणी और मर्यादा का रहे हमेशा ध्यान
दोस्त नहीं हूँ तेरा जो तेरे स्तर पर उतर आऊँगा
तेरा हाथ अपने काँधे पर नहीं, हाथ तेरा अपने हाथों में थामूगाँ
नई पीढ़ी ने इस पावन रिश्ते को दी है एक गलत पहचान
हर रिश्ते की होती है अपनी ही एक मर्यादा और मान
यह रहे हमेशा ध्यान पिता के पद का होता है एक विशिष्ट सम्मान
इसीलिये अपनी मर्यादा का रहे तुम्हें भी ज्ञान
ताकि तू भी बता सके अपने पुत्र को इस रिश्ते की सही पहचान

5 comments:

Raag said...

इस खोखली मर्यादा ने ही समाज में ज्यादातार विसंगतियाँ फैला रखी है।

Aditya Kumar Tiwari said...

वाह शुभ्रा जी,
प्रयास नितान्त सराहनीय है। इसे देखकर कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं-

"पिता पुत्र सम्बन्ध का ऐसा हुआ विकास ,
आज राम ही दे रहे दशरथ को वनवास ।
सुना गाँव में हैं पिता दस दिन से बीमार ,
दारु पीकर सो गये शहरी श्रवण कुमार।।"

राकेश खंडेलवाल said...

एक ईमानदार अभिव्यक्तु के लिये साधुवाद.

सुनीता शानू said...

बहुत सुन्दर कविता है आज समाज में यही तो हो रहा है जहाँ माता-पिता बच्चो के दोस्त बन गये है बच्चो ने उनका आदर करना कम कर दिया है,...ऐक सच्चाई की पूर्ण-रूप है आपकी रचना,..
यह रहे हमेशा ध्यान पिता के पद का होता है एक विशिष्ट सम्मान
इसीलिये अपनी मर्यादा का रहे तुम्हें भी ज्ञान
ताकि तू भी बता सके अपने पुत्र को इस रिश्ते की सही पहचान
बहुत अच्छा!
सुनीता(शानू)

shubhra gupta said...

आदित्य जी,

आपकी कवितामयी टिप्पणी बहुत अच्छी लगी

राकेश जी,

आपकी टिप्पणी देखकर अच्छा लगा ...बहुत धन्यवाद

शानू,

अच्छा लगता है जब कोई अपने विचार को समझता हो. आप हमारे ब्लाग पर आयीं ...अच्छा लगा
ऎसा ही स्नेह बनाये रखें....धन्यवाद